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💥जीना इसी का नाम है 💥
“नानी, मैं एक कुल्फी और ले लूं,प्लीज़.
“चीकू ने फ्रिज खोलते हुए पूछा,
“चीकू,तुम खा चुके हो ना?… गलत बात,वो कुल्फी नानी की है.
हटो वहाँ से,
“मैंने अपने ६ साल के बेटे को आँखे तरेरीं,
लेकिन तब तक चीकू की नानी कुल्फी उसके हवाले कर चुकी थीं
“क्या माँ..,
मैं खास आपके लिए तिवारी की कुल्फी लाई थी…
ये तो खा चुका था ना।”
“अरे बेटा,जब से घुटनों में दर्द बढ़ा है ना, डॉक्टर ने कुछ भी ठंडा खाने को मना कर दिया है।”
मैंने सिर पकड़ लिया,
माँ की वही पुरानी बीमारी,
झूठ बोलने की…
बचपन में हमेशा यही हुआ,
बस माँ जान जाएं कि
क्या हमें अच्छा लगा,
और ये बीमारी उन्हें घेर लेती थी
“माँ,मटर पनीर और है
क्या,बहुत अच्छी बनी है!”
“हाँ, मेरी कटोरी से ले लो,
मुझसे तो खाई ही नहीं जा रही,
मिर्च बहुत है..”
एक बार पापा कितने मन से गुलाबी लिपस्टिक लाए थे,
बड़ी बुआ को भा गई और
माँ का फिर वही नाटक,
“अरे,रख लो जीजी…
मुझे तो बड़ा खराब रंग लगता है ये
इसके बाद दो दिनों तक
मैंने माँ से बात नहीं की थी,
पापा ने समझाया,”बेटा,
तुम्हारी माँ ने कभी अपने लिए कुछ नहीं चाहा,ऐसी ही है वो!”
चीकू की छुट्टियाँ खत्म होने वाली थीं,एक दो दिन में वापस जाना होगा,
मन अजीब सा हो रहा था…
शाम को कुछ साड़ियाँ ख़रीदीं, जिनमें से हरी बंधेज साड़ी माँ को बहुत पसंद आई…
बार बार उलट पलट कर देखती रहीं,
“माँ,ये आप रख लीजिए…
मैं दूसरी ले लूंगी”
“अरे नहीं रे,ये हरा रंग?
ना बाबा, बहुत चटक है!”
सुबह मुझे निकलना था।
सारी पैकिंग हो चुकी थी,
मैं बहुत परेशान थी,
“क्या हुआ बेटा
,क्या ढूंढ रही हो तब से..?”
“कुछ नहीं माँ,
वो रसीद नहीं मिल रही…
बिना रसीद साड़ी वापस होगी नहीं
मैंने पर्स खंगालते हुए कहा
“लेकिन वापस क्यों करनी है, तुम तो सारी साड़ियाँ अपनी पसंद से लाई थी ”
“हाँ माँ, लेकिन चीकू के पापाको
हरी वाली बिल्कुल पसंद नहीं आई
फोटो भेजी थी,बड़बड़ा रहे थे,
बोले तुरंत वापस करो…
लेकिन बिना रसीद?”
मैं रुआंसी थीं।
“वापस ही करनी है तो …
मैं रख लेती हूँ,
“माँ साड़ी लेकर अंदर चली गईं,
देखा दरवाज़े पर पापा खड़े मुस्कुरा रहे थे,
मेरी चोरी पकड़ी गई थी…
“लग गई माँ की बीमारी तुम्हें भी
“पापा ने सिर पर हाथ फेरा,
“सदा खुश रहो!”