Pविधा : कहमुकरी
सुबह शाम मैं उसे रिझाऊँ,
नैन पलक पर जिसे बिठाऊँ
बिन उसके दिल है बेहाल,
क्यों सखि साजन?ना गोपाल
घड़ी – घड़ी मैं राह निहारूँ
सुबह शाम नित उसे पुकारूँ
दरस बिना, जीवन बेकार
क्यों सखि साजन,न करतार
जा कारे के हम दीवाने
कर डारै बा नै बेगाने
छोड़ गयो,ज्यूँ रह्यो न काम
का सखि साजन,न घनश्याम
दूर रहे नहीं पास वो आये ।
फिर भी मेरे दिल को भाये ।
धवल रूप, नैनों में शेष ।
का सखि प्रीतम,नहीं राकेश ।
– नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष