-
पाँव में महावर
मांग भर चौड़ा सिंदूर
हाँथ भर चूड़ियाँ
साड़ी में लिपटी
पहली बार नैहर आना,,,
आँगन ,पेड़-पौधे
गमले दीवारें
भेटने को जी चाहा ,,
पिंजरे में
पट्टू की उछल कूद
हाथ-पैर चाटती रूबी
भौंकती,, कुकुआ कुकुआ
पूछती;कहाँ गयी थी??
नङ्गे पाँव
कमरे कमरे घूमती रही
अलमारी में सजी किताबें
मुस्कराने लगी,,,
टुकुर टुकुर ताकता
बक्सा ,मेरे कपड़े
(फिर जो समय के साथ
कम होते चले गये
और भर दिया गया
उसमें
उसट खूसट)
अजीब से भाव
आनन्द पर संशय भारी
सवाल खुद से
विस्थापित हूँ मैं??
विस्थापना दंश नही,,
प्रसवपीड़ा है,
सृजन की
चुनौती है
निर्माण की,,
सदियों से यूँ ही
एक बगिया से
दूसरे में रोपी
जाती हैं बेटियाँ,,
एक व्यवस्था है
सर्जना की
हारी नही
मुरझाई कुम्हलाई,,,,
दूब सी,,,,
बारिश की चंद बूंदों से
फिर जी उठी,,
मुस्काई, खिलखिलाई
फूली -फली
प्रस्फुटित हुई
ये नवस्थापना है
या
विस्थापना ।।डॉ रेनू सिंह
नवस्थापना
Share: