कठिन तो बहुत है
खुद का खुद में डूबना मगर
जो डूबे एक बार
फ़िर कौन चाहे निकलना
खुद से बाहर आकर
जब भी झाँका बस मुखौटे दिखे
आत्मीयता के रंग से चेहरा रंगे हुए
जो धुल जाते हैं समय के साथ
व्यवहारिक लोग व्यवहारिक सोच लिए
आत्मकेंद्रित, आत्मकाम
अपनी जगह बिलकुल सही
छुरी जैसे नुकीले चुभ जाएं
तो खून न रुके
स्वार्थ का तराजू थामे
तौलते रहते हैं सम्बन्ध
अपने लाभानुरूप
जब भी उत्तरजीविता(survival)
असंभव सी लगी है
खुद में डूबकर ही
नौका पार लगी है I © तनूजा उप्रेती,