मैं बहुत तीर्थ पे ढूंढ्त
कभी काशी कभी मदीना।
बहुत ढूंढ्त से भी ना खोज पात।
कैसे मन हो मेरा नगीना।
खोज खोज कर अब मैं हारु।
माथे पे बहे पसीना।
कोई बाह पकड़ मोहे राह दिखावे।
कैसे मन हो मेरा नगीना।
जंगल में मैं भटकन रहूँ।
पर मन ना पहुंचे ज़रीना।
अंखियन दिन रात नीर बहावें।
कैसे मन हो मेरा नगीना।