जल ही तो जीवन धारा है
वरना क्या हमारा है
जीवन नही बच पायेगा
धरा का वजुद मिट जायेगा
कभी पानी था यहाँ कुओं में
बड़े बड़े जलाशयों में
अब पानी मिलता नलकों में
प्लास्टिक की बोतलों में
पहाड़ों पर भी बर्फ नहीं
सर्द ऋतु भी सिमट रही
नदी नाले भी सूख रहे
जगंलों को हम काट रहे
सूरज आग उगल रहा
पानी को वो निगल रहा
पेड़ नहीं मैदानों में
गांव और बागानों में
बादल भी नहीं बरस रहे
पानी को सब तरस रहे
फिर भी हर कोई सो रहा
बेफिक्र हो कर जी रहा
वक्त अभी भी बाकी है
धरा पर आस अभी बाकी है
संचय पानी का कर लो तुम
पेड़ धरा पर लगा लो तुम
वरना सब पछतायेंगे
पानी कहां से लायेंगे
आने वाली पीढ़ी को हम
जहरीली हवा दे जायेंगे
– उर्मिल📖✍#चित्कला