समय की मार है दुर्दिनों से त्रस्त हूँ
शिशिरके वार से खो रही अस्तित्व हूँ
बिनपंछियों के नीड़ पतझड़ से ग्रस्त हूँ I
एकाकी, तिरस्कृत मगर हताश नहीं हूँ शांत हूँ
विश्रांत हूँ पर क्लांत नहीं हूँ संघर्ष में निरत हूँ
परास्तनहीं हूँ I
इसऋतु परिवर्तन के चक्र की अभ्यस्त हूँ
नवांकुरोंनव्पल्लवों की उद्भावना में व्यस्त हूँ
वसंत के पुनरागमन को मैं पूर्णतः आश्वस्त हूँ I
© तनूजा उप्रेती शिशिर-
जाड़ाविश्रांत-ठहरा हुआ क्लांत-थकना निरत-डूबा हुआ