तुम रहना जीवन में
बन कर भावों का आधार
अनुराग बोध साकार
छल भी तुम हो
तुम ही सुखद भ्रम
कल्पनाओं के चितेरे
स्वप्नों के सम्राट
ऐसे ही मौन रहना
स्वीकृति/अस्वीकृति के दायरे से बाहर
किन्तु रहना आस पास
क्योंकि तुम न हो तो
मैं मात्र शब्द शेष हूँ
भावहीन, रुक्ष
बिल्कुल असाहित्यिक I © तनूजा उप्रेती