अधरो के छूने से ही बस मेरा तो उद्धार हुआ
तेरे मुस्काने से प्रियवर मुझको तुझसे प्यार हुआ
तेरे रूप के दर्शन को तो चाँद सितारें भटक गये
उसी रूप के दर्शन में अब प्राण हमारे अटक गये
अटके प्राणों से ही प्रियवर चाहत का इजहार हुआ
तेरे मुस्काने से प्रियवर मुझको तुझसे प्यार हुआ
मंदिर मस्जिद गिरजाघर तो सदा लगे बेकार मुझे
अल्हण रूप में तेरे लगता है जीवन का है सार मुझे
उसी सार की बांह पकड़कर साथी फिर इकरार हुआ
तेरे मुस्काने से प्रियवर मुझको तुझसे प्यार हुआ
हटा जो घुँघट चेहरे से तो रतिपति सा आगाज मिला
तेज हुई सांसों को मेरी धड़कन वाला साज मिला
उसी रूप की धूप में साथी फागुन का श्रृंगार हुआ
तेरे मुस्काने से प्रियवर मुझको तुझसे प्यार हुआ
होंठो की लाली से तेरे नील गगन भी लाल लगा
शर्माकर जब मुझको देखा नजर नही इक जाल लगा
उपमाएँ खंडित कर डाली रूप का यू विस्तार हुआ
तेरे मुस्काने से प्रियवर मुझको तुमसे प्यार हुआ
ऋषभ तोमर