रूह मेरी देवधाम हो जैसे
और तुम……हां तुम
उस देवालय में स्थापित ईश्वरीय मूरत
है न तिलस्मी सा बन्धन अपना
संवादों से परे मौन सा वंदन अपना
तुम स्वामी मेरे
मैं दासी तेरी
अनन्तकाल से बैठी हुँ अतृप्त रूह सम्भाले
तृप्ति पाने को प्रेम की प्यासी तेरी!!
©® soni….#रूहानी