ओस की बूंदों को गिरते देखा।
पल पल खुद को मरते देखा।।
आसान नही है राह प्यार की,
कितनो को रंग बदलते देखा।।
पल पल जीना, पल पल मरना।
झूठे नाते,कोई नही यहाँ अपना।
मैंने लाशों को भी सजते देखा।
ओस की बूंदों को गिरते देखा।
शिकवा शिकायत कर भी तो किस से,
मैंने अपनो को ही तकरार करते देखा।
हाथ थाम कर जिसे चलाया था कभी।
उसी हाथ को खुद पर ऊँगली उठाते देखा।।
पल पल मैंने खुद को मरते देखा।।
रंज नही मेरा किसी से यहाँ पर।
मैंने आँसुओ को आज सूखते देखा।
गोंद में खिलाया था जिस माँ ने मुझे।
उसी का भी कुछ भेद भाव है देखा।
रंग बदलती इस दुनियाँ में मैंने।
कितने अनकहे धोखों को देखा।
हर शय पर मात मिली मुझ को,
अपनों के हाथ खंज़र देखा।
ओस की बूंदों को गिरते देखा।
पल पल खुद को मरते देखा।
✍🌹संध्या चतुर्वेदी🌹
मथुरा उप