यादों की बारिश में हम
दामन अपना भिगो लेते है
सुन्दर कल की चिंता में
आज भी अपना खो देते है
नादान बहुत हैं हम ,फिर भी
खुद को शातिर समझते है
साथी के पास रहते हुए भी
उसके साथ ही को तरसते हैं
छांव में बरगदों के खड़े राहजन
हम खजूरों तले झुलसते रहे
जिंदगी कटी हमारी पंचमी पूजते
बीन बजती रही नाग डसते रहे
दुग्ध दंशी नही दाँत इतिहास के
सर्पदंशी रहे काल को डस रहे
पीढ़ियों के स्वप्न आंज आंखों में
हम इसी काल के द्वार बस रहे
ख़ुशी आती है मुस्काते हुए सी
गम आकर उसे दबा सा देते हैं
और सब कुछ सहते हुए ही हम
आख़िर ये जीवन बिता देते हैं
★वन्दना★