चलो सोचती हूँ..आज अपना परिचय करा ही दूँ.. जो कुछ उलझे हैं सवाल तुम्हारे..आज सुलझा ही दूं.. बस एक ऐसी शख्सियत हूँ मैं..जिसका शायद ही अपना कोई वजूद है.. हर रंग..हर रूप में..ख़ुद को ढाल लेना मेरी फितरत है.. हर किसी के लिए..अपने निज को..बदल लेना मेरी आदत है.. समझो कभी तो एक माँ हूँ मै..देखो कभी तो एक बहन हूँ चाहो जिसे तो एक प्रेमिका..एक पत्नी हूँ मैं.. ख्याल रखती है हर पल.तेरे पलों का.वो प्यारी सी बेटी हूँ सदियों से हर रूप में चाहा है..बदला है खुद को..तेरी चाहत में… हाँ वही जो हर वक्त..तेरे आस-पास है..किसी ना किसी रूप में__वही एक औरत हूँ मैं_!!! लेकिन इक सवाल जेहन में अक्सर..मुझे भी उलझा ही देता है.. क्या मुझे हक है..क्या मेरे लिए भी कभी तू खुद मेरे रंग में ढाल पाया है.. जो दिया है मैंने तुझको..वो विश्वास..वो स्नेह..वो प्यार.. क्या उसी तरह तू मुझे लौटा पाया है..??? शिकायत नहीं ये..बस एक मुहब्बत है तुझसे.. ..उसी मुहब्बत के हक से जवाब दे..खुद से पूछकर.. क्या उसी विश्वास से..मुझे अपना बना पाया है तू…?? अगर हाँ..तो आज फिर ये महिला दिवस किसलिए..किस के लिए.. कियूं..क्या मैं कोई दिन के लिए बनी हूँ..??? क्या कोई..किसी खास मौके के लिए..किसी उत्सव के लिए..वजूद है मेरा.. अगर सम्मानित हूँ सदा-सदा तो फिर ये मुझे अहसास किसलिए..दिला दिया.. कि कोई एक दिन ही मेरे सम्मान के लिए..खास है.. और फिर हर दिन वही..जो ये महसूस करा जाता है.. कि हूँ तो वही मैं एक औरत..ही..जिसे एक दिन परोस कर दे दिया.. कि हो जाऊँ..मैं ख़ुश..संतुष्ट..और रहूँ हर पल..हर दिन तैयार..फिर से तेरे वजूद में ढलने के लिए……………… #Internationalwomenday
सरिता 'सरु' अरोड़ा
कविता (वेदना)
Mar 7, 2018 12:09 pm
वास्तविकता
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