*अँधेरा , तीरगी, तम*
बन चली काल कोठरी , अंधों का ये राज ।
मोहक जाल फेंक चले , कैसे शातिर बाज ।।
कैसे शातिर बाज , आग लगा प्रकाश किये।
काने तीरंदाज, मृगया आखेटन किये ।।
सत्ता धुरी सरताज,कुटिल चाल सजाय गली ।
अंधेरा कर राज ,खंदक देखो बन चली ।
नवीन कुमार तिवारी,