Naveen kumar Tiwari कुंडलियाँ Apr 17, 2018 10:46 pm ढलती शाम 17 Apr ढलती शाम घर चलिये , कर चलिये आराम । निशाचर की आहट से , नींद सोते हराम ।। नींद सोते हराम , चोर उचक्के ही दिखे । लूट मार के यार , घूमते झूमते दिखे ।। धर्म कर्म दुःख भान ,काम करिये सुख मिलती । मेहनत कर्म मान ,धाम चल सूरज ढलती।। नवीन कुमार तिवारी Read by 19 Report Post Share: Related Posts:कवि की कवितास्त्री की कामनामुस्कान दिजियेबुलबुलाअंधेरामृग तृष्णा