खायें ठोकर हम कभी, मुस्कान भूला आय ।
जबसे मिले आप तभी , चेहरा खिला जाय।
चेहरा खिला जाय , राह भटक झुमते मगन ।
दर्द उभरते भाय , चूमे भूले गगन ।
दुर जाने की बात , काली घटाये लाये।
खेल चुकी जजबात ,ठोकरे फिरसे खाये ।।
नवीन कुमार तिवारी,,
खायें ठोकर हम कभी, मुस्कान भूला आय ।
जबसे मिले आप तभी , चेहरा खिला जाय।
चेहरा खिला जाय , राह भटक झुमते मगन ।
दर्द उभरते भाय , चूमे भूले गगन ।
दुर जाने की बात , काली घटाये लाये।
खेल चुकी जजबात ,ठोकरे फिरसे खाये ।।
नवीन कुमार तिवारी,,