रक्षा खातिर शस्त्र उठालो अब तो नारी
रक्षा करने न आयेंगे अब गिरिधारी
रावण होते तो धरती पर आ भी जाते
लेकिन गली गली अब दुःशाशन क्यारी
कंश हुये हर गली गली माना ये लेकिन
अबला थी तू अब तो है ये बात पुरानी
रणचंडी बनकर अब तो तू शस्त्र उठाले
शाप न दे वध कर दे अब झाँसी की रानी
अब तो मन में केवल ये ही चाह जगा ले
चले नही अब तो रावण वाली शैतानी
मरूथल में भी फूल खिला सकती हो तुम
उठो द्रोपदी हाथ उठालो अब तो कटारी
बात पुरानी छोड़ बढ़ो तुम इस जग में
क्योंकि डॉक्टर अभियंता बन आती नारी
निज रक्षा की बात अलग वो खुद है रक्षक
क्योंकि सीमा पर भी लड़ती है नारी
ऋषभ तोमर I