गीतिका
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हार कर जो राह पर चलते नहीं हैं ।
काफ़िले में वो टिके रहते नहीं हैं ।।
छोड़ देती है नदी पीछे उन्हीं को
जो लहर के साथ में बहते नहीं हैं ।।
है घुटन उन का गला ही घोंट देती
पीर जो दिल की कभी कहते नहीं हैं ।।
कौन उनके साथ रह पाया कभी भी
हर किसी से प्यार हैं करते नहीं हैं ।।
साथ देते सत्य का आदर्श रखते
वो किसी भी मूल्य पर बिकते नहीं है ।।
उँगलियाँ उठने लगीं हर ओर हैं अब
लोग अब अन्याय को सहते नहीं हैं ।।
मोह में पड़ तरु न जो पत्ते गिराते
पुष्प मधुऋतु में कभी खिलते नहीं हैं ।।
————————–डॉ. रंजना वर्मा