ख़ामोशी से सो जाते हैं ग़ुरबत का बोझ लिए
भूखे ही सही मगर मज़बूत से कुछ बच्चे
तन्हा रातों में सड़क किनारे सितारों को ताकते
आँखों में हज़ारों ख़्वाब छिपाए कुछ बच्चे
चन्द सूख़े पत्तों को खिलौना बनाकर खेलते
दुनिया भर के ग़मों को मूँह चिढ़ाते कुछ बच्चे
नहीं मयस्सर उनहें जहाँ की ख़ुशियाँ तो ना सही
सिर्फ अपने ख़ुदा से आस लगाए कुछ बच्चे
तन्हाई की चादर के तले ज़िंदगी गुज़ारते हुए
मुसाफिरों में अपनों को तलाशते कुछ बच्चे