श्याम बिना बोलो क्या जीना
दूर रहूँ मैं उससे कभी ना
बन्द करूँ या खोलूँ आँखे
हरपल तेरा भास मैं पाऊँ
मिल जाये जो आके मुझसे
डूबती अपनी साँस मैं पाऊँ
वरना डूबा दूँ खुद ही सफीना
श्याम,,,,,,,,,
दासी हूँ मैं तेेरे चरण की
आस लगी है तेरे वरण की
प्रेम के पथ पे नित चलती हूँ
फिक्र नहीं है मुझको जलन की
पा के कान्हा खुद की रही ना
श्याम,,,,,,,,,,
तू आकाश है मैं धरती हूँ
सांवली सूरत पे मरती हूँ
प्यार में तेरे बन कर जोगन
आज ये सब से मैं कहती हूँ
*स्वरा* है अँगूठी, कृष्ण नगीना
श्याम,,,
*@स्वराक्षी स्वरा*
खगड़िया बिहार