*अंतर्मन*
अंतर्मन में है ज्वाला, पी चला उसने हाला ।
हलक में जैसे डाला,मदहोश बनिये ।।
अंतर्मन में अनल , क्रोध करते दलन ।
तमतमा ये चलन ,मदहोश रहिये ।।
अंतर्मन में विचार, मुख चिंतन से भार ।
जगत से मन हार ,मदहोश कहिये ।।
हम तुम एक बार, मिल जाये अब सार ।
अंतर्मन की झंकार ,मदहोश होईये ।।
*नवीन कुमार तिवारी, अथर्व*