*प्रकृति का अनुपम दृश्य*
गर्मी में झुलसते रहे, देख चला इंसान।
पर्यावरण के तपन पर, कौन बना शैतान ।।
सूरज देखो तप रहा, छांव मिलेंगे सोच ।
पेड़ पौधे दिखे कहां, पर्यावरण पर लोच ।।
मरूभूमि सा तप चला,बढ़ चला तापमान ।
हरियाली दिखते कहाँ ,काट चला इंसान।।
गगन चुम्बी बनते गये, कारखाने मकान ।
पानी के मोल बिकते ,बचे खेत खलिहान ।।
पेड़ पौधे झुलस रहे, पानी देते जान ।
भूजल बचाते रहिये ,सोच भले इंसान ।।
पानी पानी कर रहे, तृष्णा लेते जान ।
ताल तलैय्या सुख रहे ,गर्मी लेते प्राण ।।
स्वरचित
*नवीन कुमार तिवारी ,अथर्व*