शबरी जूठे बेर खिलावे।
फिर भी राम मिलने को आवे।
दो महीनों से बेर तोड़त मै।
कोई राम को सन्देश दे आवे।
ब्रज की गलियों में फिरत मै माखन लेकर।
वो माखन चोर ना माखन चुरावे।
यमुना तट पर पानी भरत मैं।
कोई गुलेल से गागर में छेद कर जावे।
हाथों में रंग लिए मैं घूमत।
कहीँ श्याम मिले और मोहे रंग जावे।
बेरंग सी हो गई जिन्दरिया।
अपने रंग में मोहे श्याम रंग जावे।