हैवानियत का क्रूर प्रहार और निर्दोषों की लाशों का
ढेर हमने कश्मीर की हिमरेखा से तब लहू को रिसते देखा है ।
राहों और गलियारों में भय का भयानक सन्नाटा
धरती पर स्वर्ग की छाया को धर्मों में बंटते देखा है ।
सियासत ने अपने हाथों जख़्म को नासूर कर डाला
अपनी आँखों इन्सानों को कितना नीचे गिरते देखा है ।
सीमा पर कायर घुसपैठें दहशतगर्दो से मुठभेड़ें
देश के अमर जवानों को देश पे मरते देखा है।
जब से भारत माँ के किरीट पर उस दुश्मन का कब्ज़ा है
तब से माता को नंगे सिर बेचैन व लज्जित देखा है ।
हमने कश्मीर की हिमरेखा से लहू को रिसते देखा है ।
धरती पर स्वर्ग की छाया को धर्मों में बंटते देखा है । © तनूजा उप्रेती