तिरंगा हमारे वफ़ा की निशानीशही
दों की करता बयां यह कहानी
तिरंगे की अजमत पे ऊंगली उठे जो
लहू बन के आजाये आँखों में पानी
रहें हम कहीं और बसें हम कहीं भी
रहेगा मगर दिल ये हिंदुस्तानी
मोहब्बत वफ़ा प्यार मिट्टी की खुश्बू
यहाँ ताज जैसी भी मिलती निशानी
यही इक तराना लबों पर सदा हो
कि मेरे वतन का नहीं कोई सानी
पुकारे वतन जो इरादा यही है
फिदा इस पे कर देंगे अपनी जवानी
अजीज इतना है साद हमको वतन यह
कि आंगन को जैसे कोई रात रानी
अरशद साद रूदौलवी