मन के भावों को शब्दों में पिरो कर कागज़ पर लिखूं,
लफ़्ज़ों में बसे मधुर झंकार के की दास्तां पर लिखूं।
मन तो है चंचल ,चितवन नयनों में बसता है,
बासंती हवाओं में बहार ए इश्क के नवगान पर लिखूं।
शब्द महफ़िल में मुझे तन्हा देख अश्क बहाते हैं,
तनहाई के आलम में बहती अश्क धार पर लिखूं।
तेरी यादों के कागज़ दिल में पन्नों से समेटे है मैंने,
एक एक कागज पर बसी मेरी मोहब्बत पर लिखूं।
प्रश्न तो बहुत उठते हैं मन में उत्साह उम्मीद उमंग में,
जिन्दगी की कशमकश में उलझकर जीवन पर लिखूं।।
डॉ राजमती पोखरना सुराना भीलवाडा राजस्थान