जिन्दगी की सफर
लगी चाहत की नजर
हुआ नयनोन्मिलन
खिला दो हृदय मन
खिलते रहे
मिलते रहे
चलते रहे
हँसते रहे
कई दिनों तक-
प्राकृतिक सौन्दर्य में
अपनी सौंदर्यता को
मिलाते हुए
मुस्काते हुए
एक एक पल
एक एक क्षण
गुलजार भरे माहौल में
गुल खिलते रहे
लैला-मजनूँ का खेल
जुगनू की तरह मेल
सहनशीलता का
अभाव लिए
समाज को रास नहीं
प्यार से कोई आस नहीं
दिये घोल जहर
कोशिश हर-पहर
हुआ इन कोमलांगों
पर जहर का असर
हुआ कभी अनबन
टूटा प्यार-बन्धन
थोड़े दिन का प्रकाश
अंधकार में तब्दील
मिला पथ
संयोग से वियोग का
मिली पगडंडियां
विछुड़न
तड़पन
तरसना
उन दो हृदय का
पवित्र मिलन का
हुआ अन्त
हो गए दूर
लेकर
यादों का पिटारा
ढूंढ रहे अतित के
बीते लम्हे
बीते वो सारे पल
कल्पनाओं की
उड़ान में।
मिलन की आस लिए
उम्मीद का प्यास लिए
अन्ततः
विवशता लगी हाथ में
यादगार भरे लम्हे
यादों की स्याही से
कागज़दिल पर
क्षण-क्षण-पल-पल
वर्णाक्षरों में अंकित कर
जीवन व्यतीत कर
हर पल
आँसू के शैलाब में
डुबते-उतराते रहते हैं
© रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’