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तुमने प्यार की कसमें जो खाई थी,
दिल की तन्हाई में याद आई थी,
मुमताज की तरह मेरे पास आई थी,
मेरे दिल में कागज़ दिल लिख आई थी।
तेरे चेहरे की हर मुस्कान ,
पंखुड़िया बिखेर आई थी
तेरी होठ की लाली,गाल गुलाबी
मेरे जीवन में रंग लाई थी
तेरी रेशमी जुल्फों से
मेरे एकांत मन को महका गई थी
मेरे दिल में कागज़ दिल लिख आई थी।
तुम भूल गई उस कसमे को
जो साथ रहने के लिए खाई थी,
तेरी याद को तन्हा जीवन में
तेरी तस्वीर को बनाई थी,
तेरे यहीं दगा को
मेरे दिल में कागज़ दिल लिख आई थी।
रचनाकार- रंजन कुमार प्रसाद (माध्यमिक शिक्षक