जिंदगी में फिर वहाँ बचपन मेरा हँसता मिला ..
…. जब हुआ बटवारा तो माँ का मुझे कमरा मिला ..
…… आज़माया जब कभी हर आदमी झूठा मिला ,
रूप में ऐ दोस्त तेरे मुझको आईना मिला ……
. आंखें नम थी, धड़कने बेचैन इतना ही नहीं
मेरा कागज़ दिल भी तेरी याद में जलता मिला ..
. राह में मैंने लिखा देखा था जिस पत्थर पे माँ …..
. लौट कर आया तो इक बच्चा वहाँ सोता मिला ..
…. जी रही थी वो फ़क़त सच्ची मुहब्बत के लिए ,
पर उसे जो भी मिला वो ज़िस्म का प्यासा मिला …..
… यूँ तो वो मेरी ग़ज़ल पर ” वाह ” करता था नहीं
पर वो तन्हाई में फिर मेरी ग़ज़ल कहता मिला ……. पंकजोम ” प्रेम “