काग़ज़ दिल हम तुम्हें सलाम करते हैं
चलो आज लम्हे तलाश करते हैं
तेरे और मेरे रिश्ते का हिसाब करते हैं
मैं ख़ुशबू …….
तू फूल…….
मैं ज़िन्दगी ………….
तू उसूल………
मैं किरन तू सूरज मैं मन्दिर तू उसकी मूरत……..
मैं शब्द तू पूरी किताब…………
………मैं कली तू खिलता गुलाब
मैं पेड़ तू डाली …………….
…………….मैं मेंहदी तू उसकी लाली
मैं ज़मीन तू आसमान
मैं पंख तू ऊँची उड़ान
मैं मान तू मेरा सम्मान ……….
………….मैं शरीर तू उसकी जान
मैं धरा ……..तू गगन
……..मैं बयार
तू पवन…..
मैं सुर तू संगीत ………
मैं बोल तू पूरा गीत……..
एक दूसरे के बिना दोनों अधूरे
फिर भी कभी क्यूँ नहीं हुए पूरे
बन के रहे यूँ अन्जान जैसे हो घर में कोई मेहमान
जैसे नदी के दो किनारे ………
……………… जैसे धरती और आकाश
जो क़रीब से उतने ही दूर जितने दूर से लगते पास
हमारे बीच फैली ये निशब्द ख़ामोशी ……….
……………पता नहीं कभी टूटेगी भी या नहीं
अपने बीच गुज़री इन अन्जान राहों का अंत
नहीं मालूम कहीं है भी कि नहीं
मुझको तो लगता है कि ………
कभी नहीं कहीं नहीं बिल्कुल भी नहीं
या फिर मेरे अंत के बाद ………
या पता नहीं कब ????????????
ये तो वही जाने जिसने ये खेल रचा
तेरा और मेरा ये मेल रचा
हमें तो बस अपना किरदार निभाना है
ज़िन्दगी की राह में बस चलते जाना है
“नसरीन” तुझे बस चलते जाना है ………
….चल….ते…….जा……ना………….?.?.?