द्रोण के जैसे गुरू मिले , जहाँ एकलव्य का राज हो ।
कागज तक न सीमित रख , तू इस दिल की आबाज को ॥
उठा कलम कुछ ऐसा कर , जिसके लिए तू है काबिल ।
मौका भी और मंच भी तुझको ,देता है अब कागजदिल ॥
कुछ लोग यहाँ मेरे जैसे , कुछ लोग यहाँ दिलवाले है ।
कुछ नफरत करते है मुझसे , कुछ मेरे चाहने बाले है ॥
आशा करता संग आपके , मिले मुझे मेरी मंजिल ।
”साहिल” करता नमन सभी को , नमन तुम्हे भी कागजदिल ॥
रचनाकार
गजेंन्द्र मेहरा ”साहिल”