मेरा ख़ुदा यहां हमेशा पासबान है
कैसे कहूँ कि मुश्किल ये इम्तिहान है।।
हम ज़िन्दगी में मंदिर-मस्जिद ढूँढ रहे
वो पूजता मठो में देता अब अजान है।।
थोड़ा हवाओ रुख़ इधर तुम तेज़ करो
इल्ज़ाम मुझपे न लगाओ मेरी भी जान है।।
उड़ जाती हो ऐसे तुम बनके तितली कहाँ
ख़्वाबो में आओ मेरे तुम्हे क्या गुमान है।।
वो ज़िन्दगी को हमने क़रीब से बहुत देखा
वो आदमी ही आदमी की लेता जान है।।
●आकिब जावेद●