क्या था कि उसने खोया नहीं
ज़ख्म था गहरा पर रोया नहीं
बेटी हुई जबसे विदा डोली में
बाप एक घड़ी को सोया नहीं
नन्हें उँगलियों के निशानों को
माँ ने चेहरे से कभी धोया नहीं
मिटटी की जात पता नहीं थी
वर्ना किसान ने क्या बोया नहीं
दिल रो सकता तो दिखता कि
तेरी यादों को कहाँ संजोया नहीं
सलिल सरोज