ग़ज़ल
आज इक ऐसा करिश्मा हो गया,
आसतीं का साँप सीधा हो गया।
आज फिर दिल ने उन्हें आवाज़ दी,
ख्वाब फिर अपना सुनहरा हो गया।
बेसबब उनसे मेरी नजरें मिलीं,
फिर मिलीं, फिर-फिर मिलीं, क्या हो गया।
दिल में जिसकी जुस्तजू थी, चाह थी,
वो ही पल हाथों से जाया हो गया।
देखकर नजरों में उनकी बेरुखी,
भर चला था जख्म ताजा हो गया।
दोस्ती पल भर में रुस्वा हो गयी,
दुश्मनी का नाम ऊँचा हो गया।
पाक दामन पाक अब कैसे रहे,
आदमी ही जब दरिंदा हो गया।
महफिलों में चुनते थे शौहर कभी,
जाने कैसे प्यार अंधा हो गया।
उनकी आँखों में भरोसा देखकर,
दिल का अरमां आज पूरा हो गया।
मुफलिसी की मार जिसपर भी पड़ी,
वक़्त से पहले ही बूढ़ा हो गया।
सच को अब कैसे कोई पूछे कहीं,
हर गली में एक नेता हो गया।
—–मिलन साहिब।