बन गए तारीख़ में जो ख़ुद कहानी याद रख
ज़िंदगी होती है उनकी जाविदानी याद रख
दर्द भी मज़लूम का तू भूल बैठा है अगर
कुछ नहीं तो उनकी आँखों का ही पानी याद रख
हमको विरसे में मिली है आबा-ओ-अज्दाद से
ख़ून में है जो रवानी ख़ानदानी याद रख
जिस जगह पर ग़ैर समझा जा रहा है अब हमें
थी वहां बरसों हमारी हुक्मरानी याद रख
हम मुहब्बत का सबक़ देते रहे हर दौर में
ताज जैसी हमने ही दी है निशानी याद रख
उम्र ढल जाएगी जब तो याद आएगी बहुत
जो सुनाया करती थीं नानी कहानी याद रख
फूलों की करना हिफ़ाज़त काम है मुश्किल मगर
आते आते आऐगी अब बाग़बानी याद रख
साद जो अहल-ए-सुख़न हैं दर्द लिखते हैं वही
ये नहीं तावीज़ कोई ज़ाफ़रानी याद रख
अरशद साद रूदौलवी