तुम रूठ गए हमने ये काम नहीं अच्छा
निर्दोष पे इस तरह इल्जाम नहीं अच्छा
शोहरत की तरह हो तो तारीफ के क़बिल है
तोहमत की तरह हो तो नाम नहीं अच्चा
मेहनत के बिना मिलता ईनाम कभी भी जो
हमसे पूछो तो वो ईनाम नहीं अच्छा
जिसमें ना खुशी ना गम ना कोई नशा ही हो
पी तो ले लेकिन वो जाम नहीं अच्छा
हर चीज तो दुनिया में बिकती है नहीं ‘साहब’
दौलत से लगाते हो तो दाम नहीं अच्छा ।।।