उम्र घुट घुट ही क्या बितानी है
कश्मकश में बहुत जवानी है
आदमी भाग कर किधर जाये
हर तरफ़ आग और पानी है
ज़िंदगी एक बात मान मिरी
तेरी हर बात मैंने मानी है
सिर्फ किरदार हैं अलग, हमदम
वर्ना अपनी वही कहानी है
दर्द महसूस अब हुआ मुझको
चोट लेकिन बहुत पुरानी है
बे-हयाई के दौर में हर-दम
रस्म-ए-ग़ैरत हमें निभानी है
दिल की बातों में आगए क्यों तुम
क्या नई चोट कोई खानी है
साद फिर याद आगया कोई
आज की शाम जो सुहानी है
अरशद साद रूदौलवी