इन आइनों को राज़ है पता क्या
नाज़नीनों की होती है अदा क्या
देखे एक नज़र भर के तो बोले
मद में लिपटी होती है हया क्या
जिसको मारे हुश्न बेपरहवाह
उसे फिर दवा क्या दुआ क्या
इश्क़ की लफ़्ज़े कुछ जुदा हैं
आँखों से नहीं तो छुआ क्या
वफ़ा ज़रूरी ही हर रिश्ते में
गर नहीं तो वास्ता हुआ क्या
सलिल सरोज