किया है शिकवा गिला नहीं मालूम।
क्यों वो बरहम हुआ नहीं मालूम।।
इश्क़ की इब्तिदा नहीं मालूम।
कब हुई ये ख़ता नहीं मालूम।।
मान लूं बात उसकी में कैसे।
जिसको अच्छा बुरा नहीं मालूम।।
विर्द करता हूँ उसकी यादों का।
भूलने की दुआ नहीं मालूम।।
हर मरज़ का ईलाज है लेकिन।
दर्द-ए-दिल की दवा नहीं मालूम।।
बस इशारों में बात करता है।
क्यों नहीं बोलता नहीं मालूम।।
ख़्वाब में आना ही था गर उसको।
क्यों हुआ था जुदा नहीं मालूम।।
हाथ में हाथ उसका है लेकिन।
साद को रास्ता नहीं मालूम।।
अरशद साद रूदौलवी