इश्क़ से ऐसा सिलसिला निकले
दर्द हो दिल में और दुआ निकले
ये भी मुम्किन है गुफ़्तगु से तिरी
कोई हल कोई रास्ता निकले
बात यूँ ही मजाक में थी कही
तुम तो सच-मुच के बेवफ़ा निकले
काश कि ज़हन से मिरे इकबार
तेरा चेहरा वो फूल सा निकले
हो भी सकता है राह का पत्थर
मेरी बस्ती का देवता निकले
राह दुशवार कुन समझ लेना
पांव में जब भी आबला निकले
दिल की बस्ती से रोज़ रातों में
तेरी यादों का क़ाफ़िला निकले
क्या सज़ा देगा फिर बता उस को
साद क़ातिल अगर तिरा निकले
अरशद साद रूदौलवी