अब तो जीवन सराब लगता है।
इस को जीना अज़ाब लगता है।।
ग़म को पी कर ही झूम लेते हैं ।
अब तो ग़म भी शराब लगता है।।
उम्र ढलते ही चांद सा चेहरा।
एक सूखा गुलाब लगता है।।
नोच कर खा रहा वतन मेरा ।
राजनेता उक़ाब लगता है।।
मौत को भी तरस गये अंशू ।
जुर्म का सब हिसाब लगता है।।
© अंशु कुमारी