अब किसी से नहीं गिला मुझको
जो था क़िस्मत में वो मिला मुझको
मैं कली एक सूखी डाली की
रात शबनम गिरा खिला मुझको
सब्र के साथ दे ख़ुदा मेरे
दर्द सहने का हौसला मुझको
पीठ पीछे बुराई करते हैं
मेरे मुँह पर कहें भुला मुझको
दर्द की आग जो सुलगती है
धीरे धीरे रही जिला मुझको
ख़ुद को खोए हुए हुई मुद्दत
अब तो ख़ुद से ख़ुदा मिला मुझको
दूर कैसे रहूं में अपनों से
मार डालेगा फ़ासिला मुझको
मेरे परवरदिगार हर सूरत
तेरा मंज़ूर फ़ैसला मुझको
मार डाले कहीं ना साद मुझे
मुस्तक़िल ग़म का सिलसिला मुझको
अरशद साद