ज़ख़्म देना तो मुझे उस की दवा भी देना
तुम जुदा होते हुए मुझको रुला भी देना
ख़ुद मिरे ज़ख़्म पे आकर के लगाना मरहम
दिल के शोलों को लगातार हवा भी देना
बेगुनाही की दलीलें हैं सदाक़त मेरी
मैं गुनहगार जो ठहरा तो सज़ा भी देना
होगी रुस्वाई अगर ग़ैर के हाथों में लगा
ख़त मिरा पढ़ना उसे पढ़के जला भी देना
मैं ये सामान-ए-सफ़र ले के चला जाता पर
छोड़कर तुमको कहाँ जाऊं बता भी देना
जिस तरह तोड़ दिया दिल को मेरे वैसे ही
आख़िरी रस्म जुदाई की निभा भी देना
जब जुदाई की घड़ी जान मिरी आए तो
भूल जाऊं मैं तुम्हें ऐसी दुआ भी देना
ग़ैर के नाम की मेहंदी को लगाना जिस-दम
साद हाथों से मिरा नाम मिटा भी देना
अरशद साद रूदौलवी