मिरी आँखों को अश्कों की रवानी रास आती है
ये दिल है इसको ग़म की मेहरबानी रास आती है
अकाबिर के सभी किस्से सबक़ आमोज़ हैं लेकिन
हमारे दौर को झूठी कहानी रास आती है
वतन की राह में क़ुरबान कर देते हैं हंसकर वो
मुजाहिद को कहाँ दिलकश जवानी रास आती है
नज़र के सामने आऐं तो आँखें भीग जाती हैं
वगरना हर घड़ी कब हर निशानी रास आती है
दिल-ए-मासूम पर जब से हुआ है दर्द का पहरा
बसा-औक़ात ही अब शादमानी रास आती है
सदा आज़ाद रहता है ग़म-ए-दिल बादशाहों सा
कहाँ इसको किसी की हुक्मरानी रास आती है
नया लहजा नई तहज़ीब के आदी हुए क्या साद
शराफ़त अब नहीं जो ख़ानदानी रास आती है
अरशद साद रूदौलवी