इल्जामों से हर सांस को मेरी गुनहगार किया है
बेबफाई ने मोहब्बत का जीना दुश्वार किया है
धड़कन ने हर गूंज में तुझे आबाद किया है
सूखते जख्मों ने फिर तेरा ही इंतज़ार किया है
रूह झुलस रही थी जब बेरुख़ी के दर्द में
हर सिसकी पर पहले से ज्यादा प्यार किया है
आ भी जा एक बार लिए नफरत ही सही
खाक ने भी मेरी देख तुझपर एतबार किया है
देख दर्द से मेरे पीला पड़ा ताज ए मोहब्बत भी
हर मीनार ने मेरी तड़प का इज़हार किया है
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… युवराज अमित प्रताप 77
.. दर्द भरी शायरी – ग़ज़ल