प्यार करती रही पर बता ना सकी।
तुम वही हो जिसे मैं भुला ना सकी।
चाहती थी भुलाना हर एक बात को।
ख़त तुम्हारा भी लेकिन जला ना सकी।।
तुम से वादे किये सैकड़ों थे मगर ।
एक वादा भी तुम से निभा ना सकी।
ख्वाब में तुम मिले थे कई मरतबा ।
हाले दिल पर तुम्हें मैं सुना ना सकी।।
अश्क आंखों से बहते रहे रात दिन।
अपनी चाहत को खुद में छुपा ना सकी।।
जिस्म बेजान सा हो चुका है मगर।
बन के शम्मा भी खुद को जला ना सकी।।
हैं गुनहगार अंशु तुम्हारी सनम।
जख्म दे कर जो मरहम लगा ना सकी।।
©अंशु कुमारी