प्यार क्या है सभी को बताना पड़ा।
जह्र यू ही नहीं मुझ को खाना पड़ा।।
दर्द ही दर्द हैं इस ज़हां में मगर।
दर्द सह के हमें मुस्कुराना पड़ा।।
कोई आंखें छलकने न पाये यहां।
अपना ग़म भी सभी से छुपाना पड़ा।
चीखने जब लगा दर्द से दिल मेरा
झूठी बातों का मरहम लगाना पड़ा।
घर से बेघर किया वक्त ने जब हमें।
आशियाना नया फिर बनाना पड़ा।।
झूठे इल्ज़ाम का बोझ उठता नहीं।
बोझ रिश्तों के खातिर उठाना पड़ा।
©अंशु