दिल को’ आता करार है तुमसे ।
पर कहूँ कैसे’ प्यार है तुमसे।।
रूह पाती दुलार है तुमसे।
साँस महकी बहार है तुमसे।।
ये जहाँ तप्त एक सहरा सा।
झरती’ शीतल फुहार है तुमसे।।
खार जैसी गुलाब जैसी है।
जिन्दगी मेरी’ यार है तुमसे।।
हो तुम्ही राजदार तो दिलवर।
सात जन्मों-करार है तुमसे।।
खुशनुमा शब सहर हुए साथी।
इस खिज़ा में बहार है तुमसे।।
साथ अपना जनम-जनम का है।
आस जिन्दा तो’ यार है तुमसे।।
आसमाँ हो तुम्ही सुनहरा सा।
जिन्दगी में खुमार है तुमसे।।
दे रहा रौशनी ख़ुदा ख़ुद ही ।
क्यूँकि जीवन का’ सार है तुमसे।।
आज मेरे वजूद का होना।
मीत मुझमें निखार है तुमसे।।
नूर पाकर बदन रवाँ झूमा।
साज सरगम सितार है तुमसे ।।
जो तसव्वुर सँवार बैठी हूँ ।
तो वफा आज यार है तुमसे ।।
अब घुटन ज़ार ज़ार रोती है ।
ऐ ‘अधर’ प्यार प्यार है तुमसे।।
शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’