न जाने कैसे कैसे ख़ाब दिखलाता है मेरा दिल।
बहुत बेशर्म है पर तुझसे शर्माता है मेरा दिल।
किसी भी रोज़ तुझको फ़ज्र में मैं देख लूँ तो फिर,
महब्बत के ही नग़में रात दिन गाता है मेरा दिल।
तेरे एजाज़ में तो यूँ क़सीदे खूब पढ़ता है।
मगर तुझसे बताने से तो घबराता है मेरा दिल।
जुदाई का कोई भी ख़ाब गर भूले से आ जाए,
कसम तेरी बहुत ज़ोरों से थर्राता है मेरा दिल।
बदन है संगे-मरमर सा तो आंखें आईने जैसी,
तुझे देखूं तो हाथों से फिसल जाता है मेरा दिल।
©️®️ Manjull Manzar Lucknowi