2122 1122 22
मौत सर पे ही खड़ी हो जैसे
साँसे आपस में लड़ी हो जैसे
दिल ने फ़िर कर दी बग़ावत हमसे
नज़रे उनसे ही भिड़ी हो जैसे
नैनों से बहने लगेंगी धारा
नैन से नैन लड़ी हो जैसे
पैरों में कंकड़ चुभे आपके जो
चेहरें में शिकं पड़ी हो जैसे
मज़बूत होंगी नफ़स की दीवारें
ज्योँ नज़र खुद पे पड़ी हो जैसे
ज़िंदगी में भी कहद आयी हो
भूख़ से वो भी लड़ी हो जैसे
ज़िंदगी मौत से घबरायेगी
ख़ाख से राख उड़ी हो जैसे
बीज़ नफ़रत की दिलों में न रखो
इक फ़सल दिल में खड़ी हो जैसे
उलझनों को मैं ही क्यों प्यारा लगूँ
उलझनें मुझसे अड़ी हो जैसे
-आकिब जावेद